Sunday, November 4, 2007

ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत!!

आँख खुलते ही ओझल हो जाते हो तुम,
ख्वाब बन के ऐसे क्यों सताते हो तुम…

गमों को भुलाने का एक सहारा ही सही,
मेरे मुरझाए हुए िदल को बहलाते हो तुम…

दूर तक बह जाते है जज़्बात तन्हा िदल के,
हसरतों के क़दमों से िलपट जाते हो तुम…

शीश महल की तरह लगते हो मुझको तो,
खंडहर हुई ख़वाईशों को बसाते हो तुम…

यादों की तरह क़ैद रहना मेरी आँखों मे,
आँसू बन कर पलकों पे चले आते हो तुम…

तुम्हारी अधूरी सी आस मे िदल िज़ंदा तो है
साँस लेने की मुझको वजह दे जाते हो तुम…

ख़वाईश

है दिल में ख़वाईश की तुझसे इक मुलाक़ात तो हो,
मुलाक़ात ना हो तो फिर मिलने की कुछ बात तो करो,
मोती की तरह समेट लिया है जिन्हे दिल-ए-सागर मे,
ख़वाब सज़ा के, उन ख्वाबों को रुस्वा ना करो…

बहुत अरमान है की फिर से खिले कोई बहार यहाँ,
ये मालूम भी है की जा कर वक़्त आया है कहाँ,
हवा चलती है तो टूट जाते है ह्रे पत्ते भी तो कई,
तो सूखे फूलों से खिलने की तुम इलत्ज़ा ना करो…

ना ग़म करना तुम, ना उदास होना कभी जुदाई से,
वक़्त क्ट ही जाएगा तुम्हारा मेरी याद-ए-तन्हाई से,
ये दुनिया रूठ जाए हमसे तो भले ही रूठी रहे,
सच मर जाएँगे हम, तुम सनम रूठा ना करो…

लम्हा दर लम्हा बसे रहते हो मेरे ख़यालों मे,
ज़िक्र तुम्हारा ही होता है मेरे दिल के हर सवालों मे,
लो लग गयी ना हिचकियाँ तुम्हे अब तो कुछ समझो,
कह दो की “ख़ुशी ” मेरे बारे मे इतना सोचा ना करो…