Sunday, November 4, 2007

ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत!!

आँख खुलते ही ओझल हो जाते हो तुम,
ख्वाब बन के ऐसे क्यों सताते हो तुम…

गमों को भुलाने का एक सहारा ही सही,
मेरे मुरझाए हुए िदल को बहलाते हो तुम…

दूर तक बह जाते है जज़्बात तन्हा िदल के,
हसरतों के क़दमों से िलपट जाते हो तुम…

शीश महल की तरह लगते हो मुझको तो,
खंडहर हुई ख़वाईशों को बसाते हो तुम…

यादों की तरह क़ैद रहना मेरी आँखों मे,
आँसू बन कर पलकों पे चले आते हो तुम…

तुम्हारी अधूरी सी आस मे िदल िज़ंदा तो है
साँस लेने की मुझको वजह दे जाते हो तुम…

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